मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन कà¥à¤¯à¤¾ है What is Beekeeping :
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों को विधिवत ढंग से लकडी के बने मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–िगृहों में पालकर उनसे शहद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना ही मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन कहलाता है।
वैसे तो मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी उदà¥à¤¦à¥‹à¤— अनादिकाल से चला आ रहा है परंतॠपहले आज से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ था। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® सन 1815 में कृतà¥à¤°à¤¿à¤® छतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का अविषà¥à¤•à¤¾à¤° लानाडà¥à¤°à¤¾à¤ª नामक अमेरिकन वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ने किया था। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सबसे पहले मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी टà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¨à¤•à¥‹à¤° में 1917 में तथा करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• में 1925 में आरमà¥à¤ हà¥à¤† था इसका विसà¥à¤¤à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤‚तीय सà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ पर कà¥à¤Ÿà¥€à¤° उदà¥à¤¦à¥‹à¤—ों के रोप में कृषि पर रायल कमीशन की सिफारिशों के बाद सन 1930 के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ ही हो पाया। इसके बाद 1955 में अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ खादी और गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥‹à¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤— कमीशन की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆ और इसने 1962 में मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन उदà¥à¤¦à¥‹à¤— को अपने हाथ में ले लिया इसके फलसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª पूना में केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन अनà¥à¤¸à¤¨à¥à¤§à¤¾à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤° की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गयी। इस अनà¥à¤¸à¤¨à¥à¤§à¤¾à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤° ने केनà¥à¤¦à¥à¤° सरकार की सहायता से विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° तथा पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ केनà¥à¤¦à¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किये। वासà¥à¤¤à¤µ में आधà¥à¤¨à¤¿à¤• मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन का जनà¥à¤® नैनीताल जनपद के जà¥à¤¯à¥‚लीकोट नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर हà¥à¤†à¥¤
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ Definition of beekeeping :
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों की आदत को जानकर उनकी आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं को समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° समà¤à¤•à¤° पूरी करना तथा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कम से कम कषà¥à¤Ÿ पहà¥à¤‚चाकर अधिक से अधिक लाठपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के धनà¥à¤§à¥‡ को मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन कहते हैं।
Early information about beekeeping
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाले लाठ:
शà¥à¤¦à¥à¤§ शहद : शहद à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• अमूलà¥à¤¯ है जो गोनà¥à¤¦ की तरह गढा होता है यह शà¥à¤µà¥‡à¤¤ (रंगहीन) या हलà¥à¤•à¤¾ बादामी हो सकता है शहद में मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤²à¥‚कोज, फà¥à¤°à¤•à¥à¤Ÿà¥‹à¤œ, जल तथा शेष खनिज लवण व à¤à¤‚जाईम होते हैं। शहद को करà¥à¤®à¤ मौन फूलों के मीठे रस को चूसकर मà¥à¤‚ह में लाती है और लार व अनà¥à¤¯ à¤à¤‚जाईमों से मिलाकर रस को मधà¥à¤•à¤•à¥à¤· में à¤à¤•à¤¤à¥à¤° करती है यहां इस रस में कà¥à¤› रासायनिक परिवरà¥à¤¤à¤¨ होते हैं तथा पानी की मातà¥à¤°à¤¾ कà¥à¤› कम कर दी जाती है जब मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी छतà¥à¤¤à¥‡ में पहà¥à¤‚चती है तो इस अपरिपकà¥à¤µ मधॠको छतà¥à¤¤à¥‡ में उडेल देती है इसके बाद अनà¥à¤¯ शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पंखों से हवा करके मधà¥à¤°à¤¸ को गाढा कर देते हैं और फिर मोम से बनà¥à¤¦ कर देते हैं।
शहद के उपयोग : नियमित शहद का सेवन आयॠको बढाता है, शरीर को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ व निरोग बनाता है सà¥à¤®à¤°à¤£ शकà¥à¤¤à¤¿ बढाता है तथा गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‹à¤‚ की शकà¥à¤¤à¤¿ बढाता है। नींबू के पानी में शहद मिलाकर नियमित रà¥à¤ª से पीने से मोटापा कम हो जाता है । शहद कबà¥à¤œ, खांसी व आंखों में लगाने से आंखों को आराम पहà¥à¤‚चाता है।
मोम : यह पदारà¥à¤¥ शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ के उदर के निमà¥à¤¨ तल में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¤‚थियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है। à¤à¤• किलोगà¥à¤°à¤¾à¤® मोम बनाने के लिठमोनाओं को 20 किलो शहद खाकर पचाना होता है तब à¤à¤• किलोगà¥à¤°à¤¾à¤® मोम तैयार होता है। अनेकों उदà¥à¤¦à¥‹à¤—ों में मोम की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ पडती है जैसे कोलà¥à¤¡à¤•à¥à¤°à¥€à¤®, पॉलिश, मोमà¥à¤¬à¤¤à¥à¤¤à¥€, कारà¥à¤¬à¤¨, वैसलीन, वारà¥à¤¨à¤¿à¤¶, बिजली उदà¥à¤¦à¥‹à¤— में, छापेखाने की सà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€, गोला व बारà¥à¤¦ आदि में। रायल जैली : मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की गà¥à¤°à¤‚थि का सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤µ रायल जैसी होती है। इसे शाही à¤à¥‹à¤œà¤¨ के नाम से जाना जाता है। यह बहà¥à¤¤ ताकतवर व आयॠको बढाने वाला होता है इसके पोषण से पà¥à¤°à¤œà¤¨à¤¨ शकà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ बढती है। यह दही की तरह सफेद, पतला खटà¥à¤Ÿà¥‡ सà¥à¤µà¤¾à¤¦ वाला होता है। विदेशी बाजार में इसकी कीमत बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ है परंतॠà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में इसे à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के बाद कोई बाजार अà¤à¥€ तक विकसित नहीं हो पाया है परंतॠनिकट à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में रायल जैली को à¤à¤•à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ कर निरà¥à¤¯à¤¾à¤¤ करने की काफी संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं। मौनी विष : जैसा की नाम से ही सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि मोनी विष मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी के डंक में पाया जाता है इससे मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियां अपनी रकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ करती है परंतॠयह मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन में बहà¥à¤¤ काम की चीज है। मौनी विष को à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ कर गठियाबाय जैसी असहाय बीमारियों में इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। पोलन (पराग) : यह à¤à¥€ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाला à¤à¤• उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ है परंतॠइसे मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पैदा न करके केवल फूलों से à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ करती है। पराग फूलों के नरà¤à¤¾à¤— से à¤à¤•à¤¤à¥à¤° किये जाते हैं शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की पिछली टांगों में à¤à¤• पराग टोकरी होती है। जिसमें मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पराग को à¤à¤•à¤¤à¥à¤° करके मौनगृह तक लाती है। à¤à¤• बार पराग को à¤à¤•à¤¤à¥à¤° करने में मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी को 15 से 20 मिनट का समय लगता है तथा 300 से 400 फूलों पर जाना पडता हैं। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी इसे शहद में मिलाकर अपने बचà¥à¤šà¥‡ (पैद होने से पूरà¥à¤µ) को सैल के अनà¥à¤¦à¤° ही खिलाती है, जिसे पराग रोटी कहते है। अत: इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥€à¤¨ की गोलियां व कैपसूल बनाने में à¤à¥€ किया जाता है। इसे पोलन टà¥à¤°à¥ˆà¤ª के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤•à¤¤à¥à¤° किया जाता है तथा पोलन डà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤–ाकर इसको बेचा सा सकता है।
फसलों की पैदावार में बढोतà¥à¤¤à¤°à¥€ : जिन फसलों तथा फलदार वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ पर परागण कीटों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ होता है मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से उनकी पैदावार में आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• वृदà¥à¤§à¤¿ होती है । सामानà¥à¤¯à¤¤: परागण वाली फसलों में 20 से 80 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ तक पैदावार बढ जाती है, परंतॠसूरजमà¥à¤–ी तथा कदà¥à¤¦à¥‚ वरà¥à¤— की फसलों 60 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ तक बढोतà¥à¤¤à¤°à¥€ हो जाती है तथा फल को साईज बडा हो जाता है।
वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने यह सिदà¥à¤§ कर दिया है कि मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियां यदि à¤à¤• रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का लाठमधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालक को पहà¥à¤‚चाती है तो वह 16-20 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का लाठउन किसनों, बगवानों को पहà¥à¤‚चाती है जिनके खेतों में या बागों में यह पराग व मधॠसंगà¥à¤°à¤¹ हेतॠजाती है।
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन के लिये जगह का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ Selection of the place for beekeeping:
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालने की जगह (मधà¥à¤µà¤¾à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¾) समतल तथा वहां पर परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में ताजा पानी, हवा, छाया तथा धूप होनी चाहिà¤à¥¤ इसके पास अनावशà¥à¤¯à¤• पेड-पौधे, पानी का जमाव, à¤à¤¾à¤°à¥€ वाहनों के आने-जाने के लिठसडकें या घनी आबादी नहीं होनी चाहिये। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियां सà¤à¥€ फूलों पर नहीं जाती हैं ये केवल उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ फूलों पर जाती है जहां पर इनको परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में मकरनà¥à¤¦ तथा पराग मिल सके। इसलिये मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालने की जगह के चारों ओर à¤à¤• से दो किलोमीटर तक के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में फलदार वृकà¥à¤·, फूलदार फसलें, सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ तथा जंगली वृकà¥à¤· आदि होने चाहिà¤à¥¤
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन शà¥à¤°à¥ करने का उपयà¥à¤•à¥à¤¤ समय Appropriate time to start beekeeping:
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन का वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ अकà¥à¤Ÿà¥‚बर-नवमà¥à¤¬à¤° में आरमà¥à¤ करना चाहिà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शीत ऋतॠके पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ में वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ तथा खेती की फसलों में फूलों की à¤à¤°à¤®à¤¾à¤° होती है तथा अधिक मधà¥à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤µ होने से मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों में कारà¥à¤¯ करने का जोश बढ जाता है । इस समय मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों के लिये तापमान सबसे उपयà¥à¤•à¥à¤¤ होता है । और इसी मौसम में ही रानी मकà¥à¤–ी सबसे अधिक संखà¥à¤¯à¤¾ में अंडे देती है जिससे नया मौनपालक काफी अनà¥à¤à¤µ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है।
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी खरीदने में सावधानी Caution in buying bee:
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन आरमà¥à¤ करने के लिठसामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को कम से कम सात-आठफà¥à¤°à¥‡à¤®à¥‹à¤‚ की तैयार कालोनी खरीदनी चाहिà¤à¥¤ इस समय यह धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना चाहिये कि रानी मकà¥à¤–ी यà¥à¤µà¤¾ अवसà¥à¤¥ में हो तथा फà¥à¤°à¥‡à¤®à¥‹à¤‚ पर लगेगी हà¥à¤ छतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के कोषों में परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में अंडे, लारवा, शहद तथा पराग हो जहां तक समà¥à¤à¤µ हो नर कोष के छतà¥à¤¤à¥‡ कम तथा नर मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों की संखà¥à¤¯à¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤® होनी चाहिà¤à¥¤
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी के पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° Types of bees :
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की 5 पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पायी जाती है: -
1. सारंग मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी, 2. à¤à¥à¤¨à¤—ा, 3. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी, 4. इटैलियेन मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी, 5. इमà¥à¤¬à¤° (मैलीपोना टà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤—ोना)
पहà¥à¤²à¥€ चार पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियों का वरà¥à¤£à¤¨ नीचे दिया जा रहा है व 5वें पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी का कोई अधिक महतà¥à¤µ नहीं है इसके घर में से 20-30 गà¥à¤°à¤¾à¤® शहद ही मिल पाता है।
सारंग (à¤à¤ªà¤¿à¤¸ डोरसीटी) : यह डिंगारा या à¤à¥à¤°à¤¾à¤², पहाडी मकà¥à¤–ी आदि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ नामों से à¤à¥€ पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥€ जाती है यह मैदानी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में 1200 मी. की ऊंचाई तक पायी जाती है यह बडे-बडे वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚, पानी की टंकियों तथा पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ इमारतों के खणà¥à¤¡à¤¹à¤°à¥‹à¤‚ में ऊंचाई पर लगती है यह सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ से तेज होती है तथा à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ वाली व इसका डंक तेज होता है ऊंचाई पर लगने के कारण इसका पालना समà¥à¤à¤µ नहीं हो पाया है। इससे वरà¥à¤· à¤à¤¾à¤°à¤¤ में लगà¤à¤— 30-40 किलो शहद मिल जाता है। à¤à¥à¤¨à¤—ा (à¤à¤ªà¤¿à¤¸ फलॉरिया) : जो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में छोटी या लडà¥à¤¡à¥‚ मकà¥à¤–ी के नाम से जानी जाती है यह खà¥à¤²à¥‡ में à¤à¤¾à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ आदि में छतà¥à¤¤à¤¾ बनाकर रहती है आकार में छोटी होने के कारण इससे कà¥à¤² 500 गà¥à¤°à¤¾à¤® शहद ही मिल पाता है इसका शहद आंखों के लिठअचà¥à¤›à¤¾ होता है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मौन (à¤à¤ªà¤¿à¤¸ सिराना इंडिका) : यह मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में लगà¤à¤— सà¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर पायी जाती है यह जाति पाली जा सकती है यह बिलà¥à¤•à¥à¤² बनà¥à¤¦ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर घर बनाना पसनà¥à¤¦ करती है जिसमें केवल à¤à¤• छोटा छेद हो। इसे पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पसनà¥à¤¦ नहीं होता। यह अपने छतà¥à¤¤à¥‡ समानांतर बनाती है। यह पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• अवसà¥à¤¥à¤¾ में पेडों की खोखरों, दरारों तथा घडों या सनà¥à¤¦à¥‚कों में मिल जाती है परंतॠआधà¥à¤¨à¤¿à¤• तरीके से इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मौनगृहों में पाला जाता है। इटैलियन मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी (à¤à¤ªà¤¿à¤¸ मैलीफेरा) : यह मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी आदतों में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मौन से बहà¥à¤¤ मिलती जà¥à¤²à¤¤à¥€ है इसका पैतृक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ यूरोप है इसका आकार à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी से कà¥à¤› बडा होता है तथा रेंज à¤à¥‚रा होता है इसकी अधिक परिशà¥à¤°à¤® करने की आदत के कारण ही मौनपालकों ने इसे अपनाया है यह मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी अपना à¤à¥‹à¤œà¤¨ लेने के लिठ2.5 किलोमीटर तक चली जाती है इसमें घर छूट, बकछूट की आदत कम होती है तथा बीमारियां कम लगती हैं à¤à¤• मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी वंश से वरà¥à¤·à¤à¤° में औसतन 50 किलोगà¥à¤°à¤¾à¤® या इससे à¤à¥€ अधिक शहद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है।
मौनवंश की विशेषताà¤à¤‚:
à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ मौनवंश में à¤à¤• रानी, कà¥à¤› नर तथा करà¥à¤®à¤ मौन (वरà¥à¤•à¤°) सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होटल है। à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ मौनवंश में निमà¥à¤¨ विशेषताओं का होना अनिवारà¥à¤¯ है : -
- 1. कम संखà¥à¤¯à¤¾ में कम काटती है।
- 2. अधिक शहद à¤à¤•à¤¤à¥à¤° करती है।
- 3. रानी अधिक अंडा देती है।
- 4. मौनवंश में पराग का संगà¥à¤°à¤¹ अचà¥à¤›à¤¾ है।
- 5. बकछूट तथा घर छूट की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कम है।
जीवन चकà¥à¤° : मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी का जीवन चकà¥à¤° तीन अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में पूरा होता है:-
1. अंडा अवसà¥à¤¥à¤¾, 2. सà¥à¤‚डी या लारवा अवसà¥à¤¥à¤¾, 3. पà¥à¤¯à¥‚पा अवसà¥à¤¥à¤¾ । रानी को अंडा देने के तीन दिन बाद अंडे से लारवा अवसà¥à¤¥à¤¾ में पहà¥à¤‚चने से पहले रख देती है। तीन दिन तक सà¤à¥€ लारवा अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं को शाही à¤à¥‹à¤œà¤¨ खिलाया जाता है उसके बाद मामौन के अतिरिकà¥à¤¤ दूसरे मौन कीटों को शहद में पराग मिलाकर दिया जाता है जिसे मोनी रोटी कहते हैं। लारवा के चारों तरफ à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¤°à¤•à¤° बनà¥à¤¦ कर दिया जाता है। 20 दिन के बाद पूरà¥à¤£ मकà¥à¤–ी बनकर तैयार होती है और सैल से निकल आती है नर मौन 24 दिन में पूरà¥à¤£ अवसà¥à¤¥à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है और रानी 15-16 दिन में तैयार हो जाती है।
अवसà¥à¤¥à¤¾ |
मां मौन |
करà¥à¤®à¤ मौन |
नर मौन |
अणà¥à¤¡à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ |
3 |
3 |
3 |
लारवा |
5 |
4-5 |
5-7 |
पà¥à¤¯à¥‚पा (कीटावसà¥à¤¥à¤¾) |
7-8 |
11-12 |
13-14 |
|
15-16 |
10-20 |
24 |
शà¥à¤°à¤® विà¤à¤¾à¤œà¤¨ : मौनों में शà¥à¤°à¤® विà¤à¤¾à¤œà¤¨ लिंग तथा आयॠके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° होता है मौन सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¥‹à¤·à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤‚ति आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• काम नहीं कर सकते। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मौनों के करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सीमा निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ की गयी है नर मौन पà¥à¤°à¥à¤· जाति का होता है इसका à¤à¤• मातà¥à¤° कारà¥à¤¯ कà¥à¤‚वारी मां मौन को गरà¥à¤à¤¿à¤¤ करना होता है। नर अनà¥à¤¯ कोई कारà¥à¤¯ नहीं करता à¤à¥‹à¤œà¤¨ के लिठà¤à¥€ यह अनà¥à¤¯ वरà¥à¤•à¤°à¥‹à¤‚ पर ही निरà¥à¤à¤° करता है।
- रानी का कारà¥à¤¯ केवल अंडे देना होता है।
- करà¥à¤®à¤ मौनों में शà¥à¤°à¤® विà¤à¤¾à¤œà¤¨ उमà¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° होता है।
- 1-3 दिन तक की करà¥à¤®à¤ मौनों का कारà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की तथा छतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की सफाई आदि करना होता है।
- 3-6 दिन की करà¥à¤®à¤ मौनें बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को à¤à¥‹à¤œà¤¨ खिलाती है।
- 6-13 दिन तक इनके सिर में मधॠअवलेह गà¥à¤°à¤‚थि विकसित हो जाती है जिससे à¤à¤• दूध सा निकलता है जिसे रायल जैली (शाही à¤à¥‹à¤œà¤¨) कहते हैं तीन दिन तक के सà¤à¥€ लारवा अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं को रायल जैली खिलायी जाती है।
- 13-18 दिन के बीच मौमी गà¥à¤°à¤‚थियां पेट के नीचे की खणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ में मोम बनाती हैं।
- 18-20 दिन के बाद मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी छतà¥à¤¤à¥‡ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ व दà¥à¤µà¤¾à¤° रकà¥à¤·à¤¾ का काम करती है।
- 20 दिन के बाद घर पहचान व उडना सीखती है ।
घरछूट व बकछूट :
घरछूट : घर छूट का अरà¥à¤¥ होता है अपने रहने वाले निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को छोड देना। मौनों को अपने रहने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से बडा लगाव होता है परंतॠकई बार इनके समà¥à¤®à¥à¤– à¤à¤¸à¥€ समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाती है कि इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने आवास को छोडना पडता है। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ घर को ये जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का तà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बना बनाया छोड देती है और वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤• मौन तथा मां मौन नये घर की तलाश में निकल पडते हैं इसे ही घर छूट कहते हैं।
घरछूट व बकछूट के कारण :
रहने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का अनà¥à¤ªà¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ होना। à¤à¥‹à¤œà¤¨ की कमी। गरà¥à¤à¤¾à¤¥ घर छूट। दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परेशान किये जाने पर। असहनीय सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाना।
घर छूट किसी à¤à¥€ मौसम में हो सकता है जब अमृत सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤µ कम होता तब अधिकांश मौनवंश घर छूट करते हैं।
बकछूट : बसंत ऋतॠमें कà¥à¤› मौनवंश विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ होकर à¤à¤• समूह पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ छोडकर अनà¥à¤¯à¤¤à¥à¤° कहीं जाकर नया घर बसाने निकल पडते है इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤® या बकछूट कहते हैं। बकछूट की संखà¥à¤¯à¤¾ मौनवंश की शकà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤• से अधिक à¤à¥€ हो सकती है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° मौनवंश से निकलà¥à¤¨à¥‡ वाले मौनों के समूह को ही बकछूट कहकर पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¤à¥‡ हैं बकछूट का मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤à¤¾à¤µ होता है सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कम पड जाने पर मौनवंश बकछूट कर जाते हैं।
बकछूट में सहायक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ :
सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की कमी, 2. शिशॠककà¥à¤· में à¤à¥€à¤¡ हो जाना, 3. मौसम का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ, 4. मा मौन (रानी) का बà¥à¤¢à¥€ हो जाना।
बकछूट पà¥à¤°à¤¾à¤¯: बसंत ऋतॠमें खà¥à¤²à¥‡ मौसम में 10 से 4 बजे के बीच होता है।
बकछूट का पकडना:
बकछूट या सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤® उडकर पास ही किसी पेड की टहनी आदि पर बैठजाता है जिसे सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤® बैग या बकछूट थैले की सहायता से पकड लेते हैं।
विà¤à¤¾à¤œà¤¨ :
किसी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ मौनवंश से उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का दूसरा मां मौन यà¥à¤•à¥à¤¤ मौनवंश बनाने को विà¤à¤¾à¤œà¤¨ कहते हैं विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के समय धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रहना चाहिठकि मां मौन रहित मौनवंश में ताजे अणà¥à¤¡à¥‡ तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¥‡ फà¥à¤°à¥‡à¤® अवशà¥à¤¯ हों।
माईगà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ : जब à¤à¤• से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मौनवंशों को अधिक शहद तथा वंश वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठले जाया जाता है तो इसे माईगà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ या सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤‚तरण कहा जाता है।
वदà¥à¤§à¥‹à¤¦à¤¾à¤° : मां मौन लगà¤à¤— दो से लेकर ढाई वरà¥à¤· तक मौनवंश में उपयोगी होती है इसके बाद रानी नर उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• हो जाती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दो वरà¥à¤· बाद शà¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤£à¥ कोष समापà¥à¤¤ होने लगता है और दोबारा रानी गरà¥à¤ धारण नहीं करती इसलिठजब मौने यह जान लेते हैं कि उनकी रानी नर उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• हो गयी है तो उसे तà¥à¤°à¤‚त बदलकर नयी रानी बना देती है।
शीतकालीन बनà¥à¤§à¤¨ : शीत बनà¥à¤§à¤¨ का अरà¥à¤¥ होता है ठणà¥à¤¡ के मौसम में इस पà¥à¤°à¤•à¤° के उपाय किये जायें कि मौनवंशों को à¤à¥€à¤·à¤£ ठणà¥à¤¡ से बचाया जा सके। हवा के तेज à¤à¥‹à¤‚के सीधे ही मौनगृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ न कर पायें इसके लिये मौनगृह में कोई à¤à¥€ छेद आदि नहीं होना चाहिये यदि हो तो गीली मिटà¥à¤Ÿà¥€ से बनà¥à¤¦ कर दिये जायें। मौनगृह के इनर कवर के नीचे टाट का टà¥à¤•à¤¡à¤¾ अवशà¥à¤¯ ढका होना चाहिये। मौनगृह के चारों ओर बोरी या पà¥à¤°à¤¾à¤² बानà¥à¤§ देनी चाहिये।
मौनों का à¤à¥‹à¤œà¤¨ : à¤à¥‹à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ की बूलà¤à¥‚त आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है इसलिये मोने à¤à¥€ अपने à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तलाश में पà¥à¤°à¤¾à¤¤: होते ही निकल पडती है तथा शाम तक à¤à¥‹à¤œà¤¨ का संगà¥à¤°à¤¹ à¤à¤¸à¥‡ समय के लिठकरती है जब पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥‹à¤œà¤¨ नहीं मिलता परंतॠमौनपालक उनका संगà¥à¤°à¤¹ किया हà¥à¤† सारा à¤à¥‹à¤œà¤¨ निकाल लेता है। बà¥à¤°à¥‡ समय के लिठजमा किया गया à¤à¥‹à¤œà¤¨ न रहने पर यह मौनपालक की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है कि वह बरसात या सूखे समय में मौनवंश को कृतà¥à¤°à¤¿à¤® à¤à¥‹à¤œà¤¨ देकर जिवित रखें।
विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मौसम के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चीनी का शरबत बनाकर मौनों को पिलाया जा सकता है इसके लिये मौनगृह के अनà¥à¤¦à¤° ही à¤à¥‹à¤œà¤¨ पातà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ दिया जाता है ।
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालन में उपयोग होने वाले उपकरण à¤
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